USGS – भूविज्ञान एवं डेटा का प्रमुख स्रोत

जब आप USGS, United States Geological Survey, अमेरिकी सरकार की भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण एजेंसी, जो पृथ्वी विज्ञान, जल संसाधन, भूभौतिकी और पर्यावरणीय डेटा एकत्रित करती है. Also known as अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, यह संस्थान वैश्विक स्तर पर earth science research में मानक स्थापित करता है। USGS का डेटा भूविज्ञान (जैसे भूविज्ञान, पृथ्वी की संरचना, प्रक्रियाओं और इतिहास का अध्ययन) को सटीक बनाता है, जबकि प्राकृतिक आपदा (जैसे प्राकृतिक आपदा, भूभौतिकीय या जलवायवीय घटनाएँ जो मानवीय नुकसान पहुँचाती हैं) की भविष्यवाणी में मदद करता है। इसी तरह, डेटा विज्ञान ( डेटा विज्ञान, बड़े डेटा सेटों का विश्लेषण कर अंतर्दृष्टि निकालने की विधि) USGS के विशाल डेटाबेस को प्रोसेस करने के लिए कुशल टूल प्रदान करता है।

USGS के कार्य को समझना आसान नहीं है, लेकिन इसका मूल सिद्धांत तीन शब्दों में बयां किया जा सकता है: डेटा, अनुसंधान, सुरक्षा। पहला सिद्धांत है विस्तृत डेटा संग्रह – जलवायु डेटा, भूभौतिकीय मानचित्र, जल स्तर मापन आदि। दूसरा है अनुसंधान, जहाँ वैज्ञानिक इन डेटा का उपयोग करके समुद्र‑स्तर वृद्धि, भूगर्भीय रिसाव या भूकंप जोखिम का मॉडल बनाते हैं। तीसरा है सुरक्षा, क्योंकि सरकारें USGS के पूर्वानुमानों पर निर्भर कर आपदा प्रबंधन, बुनियादी ढाँचा योजना और नागरिक सुरक्षा के निर्णय लेती हैं। इस त्रिकोणीय संबंध को हम एक सरल त्रिपुट के रूप में कह सकते हैं: "USGS डेटा भूविज्ञान अनुसंधान को सक्षम बनाता है", "भूविज्ञान प्राकृतिक आपदा पूर्वानुमान के लिए USGS डेटा पर निर्भर करता है", और "डेटा विज्ञान USGS द्वारा प्रदान किए गए बड़े पैमाने के डेटा को प्रोसेस करता है"।

USGS से जुड़े प्रमुख विषय

USGS के योगदान को ठीक‑ठीक देखना हो तो दो बड़े क्षेत्रों पर करीबी नज़र डालें: जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन प्रबंधन। जलवायु परिवर्तन ( जलवायु परिवर्तन, वायुमंडलीय, महासागरीय और स्थल तापमान में दीर्घकालिक बदलाव) के प्रभाव को मापने में USGS के थर्मल स्प्रिंग, ग्लेशियर रिट्रेशन और समुद्र‑स्तर डेटा का बड़ा योगदान है। भारत जैसे द्वीप‑देशों के लिए ये डेटा नीतियों की दिशा तय करता है। दूसरी तरफ, जल संसाधन ( जल संसाधन, भूजल, सतही जल और जलवायु-आधारित जल उपलब्धता का समुच्चय) के प्रबंधन में USGS द्वारा बनाए गए हाइड्रोलॉजिकल मॉडल्स सटीक बाढ़ पूर्वानुमान और जल आपूर्ति योजना बनाते हैं। इन दोनों क्षेत्रों में USGS का डेटा जल विज्ञानियों, नीति निर्माताओं और आम जनता को विश्वसनीय जानकारी देता है, जिससे सतत विकास के लक्ष्य हासिल होने में मदद मिलती है।

भारतीय संदर्भ में USGS के डेटा को क्या महत्व है? कई बार भारतीय संस्थानों ने USGS के ग्लोबल सिसमिक नेटवर्क को अपने स्थानीय भूकंपीय मॉनिटरिंग के साथ जोड़कर जोखिम मानचित्र बनाए हैं। इससे उत्तर भारत में भूकंप-प्रवण क्षेत्रों की सटीक पहचान हो पाई है, जबकि दक्षिण भारत में जलवायु‑संबंधी बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए नदियों की प्रवाह दरें मॉनिटर की जा रही हैं। इसके अलावा, USGS के रिमोट‑सेंसिंग इमेजरी ने भारतीय वन कवरेज की स्थिति और जलभ्रष्टता को ट्रैक करने में मदद की है। इन उपयोगों से स्पष्ट होता है कि USGS केवल अमेरिकी सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक आँकड़े प्रदान करके हर देश के पर्यावरणीय निर्णयों को आकार देता है।

यदि आप इस टैग पेज पर आए हैं, तो आप संभवतः USGS से जुड़ी ताज़ा ख़बरें, विश्लेषण या विशिष्ट रिपोर्ट पढ़ना चाहेंगे। नीचे आप पाएँगे विभिन्न लेख जो USGS के नवीनतम डेटा रिलीज़, उसकी भारत‑केन्द्रित सहयोग, और भूवैज्ञानिक जोखिमों पर विशेषज्ञों की राय को कवर करते हैं। चाहे आप छात्र हों, शोधकर्ता हों या सामान्य पाठक, इन लेखों से आपको USGS के काम को समझने, उसकी विश्वसनीयता का आकलन करने और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहने में मदद मिलेगी। अब देखते हैं कौन‑कौन से अपडेट आपके लिए तैयार हैं।

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