आयात शुल्क (कस्टम ड्यूटी) क्या है?
जब कोई सामान विदेश से भारत लाया जाता है, तो सरकार उस पर एक कर लगाती है, उसे आयात शुल्क या कस्टम ड्यूटी कहते हैं। यह कर सरकार के राजस्व का हिस्सा है और अक्सर स्थानीय उद्योगों की रक्षा के लिए भी इस्तेमाल होता है।
सबसे बुनियादी बात यह है कि आयात शुल्क का प्रतिशत सामान की मूल्यांकन (इंवॉइस वैल्यू) पर तय होता है। कभी‑कभी इसमें अतिरिक्त तालिका या उत्पाद‑विशिष्ट शुल्क भी जुड़ते हैं, इसलिए इनवॉइस देख कर ही सही अनुमान लगाना चाहिए।
कब और कैसे लगती है आयात शुल्क?
सामान भारत में पहुंचते ही कस्टम्स क्लियरेंस के लिए दस्तावेज़ जमा करने होते हैं। इन दस्तावेज़ में इनवॉइस, पैकिंग लिस्ट और मूल प्रमाण पत्र शामिल होते हैं। कस्टम अधिकारी इनकी जाँच करके उत्पाद को वर्गीकृत करते हैं और लागू दर तय करते हैं।
यदि आप पहले से टैक्स बेनिफिट स्कीम (SGST/IGST) के अंतर्गत हैं, तो आप कुछ छूट या रिवेटेड टैक्स ले सकते हैं। इसके लिए रजिस्टर्ड फर्म होना जरूरी है, इसलिए अपना GST नंबर अपडेट रखें।
व्यापारियों के लिए आसान टिप्स
1. **HS कोड चेक करें** – हर उत्पाद का एक HS कोड (हर्म्स कोड) होता है, जिससे शुल्क की दर तय होती है। सही कोड जानने के लिए आधिकारिक कस्टम वेबसाइट या विशेषज्ञ से मदद लें।
2. **फ़्री ट्रैड एग्रीमेंट (FTA) का लाभ उठाएं** – भारत ने कई देशों के साथ FTA किया है। अगर आपका सामान उन देशों से आ रहा है, तो आप छूट या कम दर का दावा कर सकते हैं।
3. **पर्याप्त दस्तावेज़ तैयार रखें** – इनवॉइस, बिल ऑफ़ लॅडिंग, सर्टिफ़िकेट ऑफ़ ओरिजिन आदि बिना देर किए प्रस्तुत करें, नहीं तो कस्टम क्लियरेंस में देरी और अतिरिक्त फीज़ लग सकती है।
4. **कस्टम ब्रोकर्स से संपर्क रखें** – अगर आयात प्रक्रिया जटिल लग रही है, तो भरोसेमंद ब्रोकर्स को हायर करें। वे घोषणा, मूल्यांकन और कस्टम ड्यूटी का सही हिसाब जल्दी कर देंगे।
5. **नियमित अपडेट फॉलो करें** – आयात शुल्क की दरें समय‑समय पर बदलती रहती हैं। हर महीने सरकारी नोटिफिकेशन या भरोसेमंद न्यूज़ सोर्स देखें, ताकि आप अनुत्पादक शुल्क से बच सकें।
इन छोटे‑छोटे कदमों से आप आयात प्रक्रिया को तेज़ और किफ़ायती बना सकते हैं। याद रखें, सही जानकारी और समय पर कार्रवाई ही लागत को घटाने की चाबी है।
अगर आप अभी भी confused महसूस कर रहे हैं, तो सबसे पहले अपने HS कोड को पहचानें, फिर बुनियादी शुल्क की गणना करें और आख़िर में FTA या रिवेटेड टैक्स विकल्प देखें। यही सबसे तेज़ तरीका है खर्च कम करने का।