23 सितंबर को ट्रम्प ने अपनी ट्रुथ सोशल अकाउंट पर एक बड़ा कदम उठाया – 1 अक्टूबर से सभी ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100 % टैरिफ लगाने की घोषणा की। इस खबर ने भारतीय फ़ार्मास्यूटिकल सेक्टर को हिला दिया।
शेयर बाजार में पहला झटका
शेयर बाजार में सबसे तेज़ गिरावट Sun Pharma को देखनी पड़ी। इसने अपना शेयर 52‑सप्ताह के निचले स्तर 1,547 रुपये पर बंद किया, जो पिछले दिन की तुलना में 5 % कम था। इसी तरह, Nifty Pharma इंडेक्स भी 2.14 % गिरकर 5.2 % की साप्ताहिक गिरावट दर्ज कर गया।
- Biocon – 3.3 % गिरकर 344 रुपये
- Zydus Lifesciences – 2.8 % गिरकर 990 रुपये
- Aurobindo Pharma – 2.4 % गिरकर 1,070 रुपये
- Dr. Reddy's – 2.3 % गिरकर 1,245.30 रुपये
- Lupin, Cipla – दोनों 2 % गिरकर क्रमशः 1,923.30 रुपये और 1,480 रुपये
- Torrent Pharma – सबसे कम गिरावट 1.5 % पर 3,480.65 रुपये
इन गिरावटों के पीछे मुख्य वजह ट्रम्प द्वारा तय किया गया नया टैरिफ था, जो केवल तब नहीं लगेगा जब कंपनी US में खुद का फ़ार्मा प्लांट बना रही हो या निर्माण चरण में हो।

जेंरिक दवाओं को मिली राहत और भविष्य की चिंता
अच्छी बात यह थी कि नई नीति में जेंरिक दवाओं को छूट दी गई। भारत की बड़ी फ़ार्मा कंपनियों की अधिकांश US बिक्री जेंरिक दवाओं पर निर्भर करती है, इसलिए इस सेक्टर को सोने की परत मिल गई। Dr. Reddy's, Sun Pharma, Lupin और Aurobindo जैसी कंपनियों ने पहले ही US के पूर्वी तट पर, मैसाचुसेट्स से लेकर नॉर्थ कैरोलाइना तक, निर्माण इकाइयाँ खोली हैं। इन आधारभूत सुविधाओं के कारण उनका एक्सपोज़र कम हो सकता है।
फिर भी, विशेषज्ञों ने इशारा किया है कि यूरोपीय कंपनियों – खासकर आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड और जर्मनी की – पर इस टैरिफ का भारी असर पड़ सकता है। Global Trade and Research Initiative के एज अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत के US में जेंरिक एक्सपोर्ट 2024 में $1.35 बिलियन तक पहुँच चुके हैं, जो कुल फ़ार्मा एक्सपोर्ट का एक-तिहाई है। चूँकि ये एक्सपोर्ट मुख्यतः जेंरिक हैं, भारत को सीधे बड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी करोलिन लीविट ने इस नीति को “सेंस वाले” कदम बताया, यह सवाल उठाते हुए कि ज़रूरी दवाएँ चीन या अन्य देशों से आयी हों तो क्या हो। इस बीच, ट्रम्प ने संकेत दिया है कि अगले 18 महीनों में टैरिफ 250 % तक बढ़ सकते हैं, और संभव है कि जेंरिक दवाओं को भी इस दायरे में लाया जाए। यह बात भारतीय फ़ार्मा उद्यमियों के लिए एक चेतावनी बन गई है कि उन्हें US में यथासंभव उत्पादन आधार मजबूत करना होगा, तभी भविष्य में इस तरह की नीतियों का नुकसान कम होगा।
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