ताइवान के मामले पर भारत की नीति: राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियाँ
ताइवान का मामला दुनिया भर में गर्म है। भारत के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा है क्योंकि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। हमेशा से भारत ने एकीकृत चीन की नीति का समर्थन किया है, लेकिन ताइवान के साथ व्यापार और तकनीकी सहयोग को भी बढ़ावा दिया है। ताइवान ने हाल ही में भारत के साथ नई तकनीकी सहयोग के लिए बातचीत शुरू की है।
भारत की द्विपक्षीय नीति का संतुलन
चीन के साथ भारत के आर्थिक संबंध गहरे हैं, लेकिन ताइवान के साथ भी तेजी से विकास हो रहा है। ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर उद्योग दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत इन क्षेत्रों में ताइवान से सहयोग करना चाहता है, लेकिन चीन के दबाव को देखते हुए सावधानी बरतनी होगी।
हाल ही में ताइवान के नए राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान भारत ने ताइवान के साथ व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में नई योजनाएं शुरू की हैं। इनमें सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में सहयोग शामिल है। यह भारत के लिए तकनीकी विकास का अवसर है।
लेकिन चीन ने भारत के इस कदम को लेकर चिंता जताई है। भारत को चीन के साथ बातचीत करके यह सुनिश्चित करना होगा कि दोनों देशों के बीच तनाव न बढ़े। भारत की नीति के अनुसार, वह ताइवान के साथ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है, लेकिन राजनीतिक स्तर पर चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना जरूरी है।
अगर भारत इस संतुलन को बनाए रखता है, तो वह न केवल चीन के साथ अच्छे संबंध बना सकता है, बल्कि ताइवान के साथ व्यापारिक विकास का भी लाभ उठा सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापार का आकार बढ़ाने से भारत की अर्थव्यवस्था को भी मदद मिलेगी।