गोवर्धन पूजा: दिवाली के बाद प्राकृतिक पूजा का महत्त्वपूर्ण पर्व
गोवर्धन पूजा को हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है और इसे दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन को कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा तिथि को मनाया जाता है और विशेष रूप से कृष्ण भक्ति के साथ जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण ने कहा था कि प्राकृतिक संपदाओं की पूजा करना चाहिए और इसके अंतर्गत गोवर्धन पर्वत को भी पूजा का हिस्सा माना जाता है। इस पर्व को ब्रज यानी वृंदावन के क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है। वहां की कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था और पूरे गांव को बारिश के दुष्प्रभाव से बचाया था।
गोवर्धन की पूजा विधि और तैयारी
गोवर्धन पूजा की विधि खास होती है। पूजा की शुरुआत से पहले भक्त स्नान करते हैं और साफ कपड़े पहनते हैं। पूजा स्थल पर एक छोटी सी चौकी पर गोवर्धन की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है। इसे पंचामृत से स्नान कराया जाता है, जो दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण होता है। इसके बाद प्रतिमा को वस्त्र व पुष्पों से सजाया जाता है। पूजा के दौरान सबसे पहले दीप जलाना होता है, फिर कुमकुम, अक्षत और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। अंत में, गोवर्धन व्रत कथा का पाठ किया जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
गोवर्धन पूजा के साथ ही इस दिन अन्नकूट भोजन का आयोजन भी होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन और मिठाइयाँ बनाकर अर्पित की जाती हैं। इसका एक धार्मिक महत्व भी है, जो समाज में भंडारे के रूप में प्रकट होता है।
शुभ मुहूर्त और 2024 में गोवर्धन पूजा
2024 में गोवर्धन पूजा का तिथि 2 नवंबर को है। इस दिन के तीन शुभ मुहूर्त हैं: सुबह 6:34 बजे से 8:46 बजे तक, फिर दोपहर 3:23 बजे से 5:35 बजे तक और फिर शाम को 5:35 बजे से 6:01 बजे तक। भक्त इन मुहूर्तों में अपनी पूजा करते हैं और खुशी मनाते हैं।
यह समय विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय के दौरान किए गए कार्यों को सफल और मंगलमय माना जाता है। गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, यह खेती, पशुपालन और समाज के साथ हमारे संबंधों को मजबूत करने का एक तरीका भी है।
गोवर्धन पूजा का समाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व के माध्यम से प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को उजागर किया जाता है। यह समय होता है जब हम समझते हैं कि हमारे चारों ओर की प्राकृतिक संपदाएँ, जैसे पहाड़, नदियाँ और वनस्पतियाँ, हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।
गायों की पूजा करना इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है, जो हमें कृषि आधारित समाज में पशुधन के महत्त्व की याद दिलाता है। गाय का दूध और उससे बने उत्पाद रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। इनकी समुचित देखभाल के लिए गोवर्धन पूजा एक विशेष अवसर प्रदान करती है।
उद्योगीकरण और शहरीकरण के इस दौर में, गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को पुनः स्थापित करने और इस बात पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है कि कैसे हम इसे संरक्षित कर सकते हैं। ब्रज में इसे विशेष अनुष्ठान और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहाँ इसे मूल रूप से आरंभ किया गया था। आज यह पर्व पूरे देश में एक पारंपरिक और धार्मिक आस्था के रूप में मनाया जाता है।
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