दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख़ ख़ान और नेटफ़्लिक्स को दे दी सुनवाई नोटिस

दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख़ ख़ान और नेटफ़्लिक्स को दे दी सुनवाई नोटिस

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को शाहरुख़ ख़ान, अभिनेता और उनकी कंपनी रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के साथ‑साथ स्ट्रीमिंग दिग्गज नेटफ़्लिक्स को भी समानरूप दावे में नोटिस जारी किया। यह नोटिस समीर वंकेड़े—पूर्व NCB मुंबई ज़ोनल डायरेक्टर और वर्तमान में भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में अधिकारी—के 25 सितंबर 2025 को दायर मानहानि मुक़दमे के जवाब में आया। न्यायाधीश पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने प्रतिवादियों को सात दिनों के भीतर अपना उत्तर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जबकि अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 तय की गई है।

मामले की पृष्ठभूमि

विवाद का केंद्र बिंदु नेटफ़्लिक्स की डॉक्यू‑सरीज़ The Ba***ds of Bollywood है, जिसका निर्देशन आर्यन ख़ान—शाहरुख़ ख़ान और गौरी ख़ान के बेटे—ने किया है। 2021 के अक्टूबर में नशा नियंत्रण ब्यूरो (NCB) द्वारा एक क्रूज़ शिप पर करे हुए ड्रग रैड के दौरान आर्यन ख़ान को गिरफ्तार किया गया था; उस समय समीर वंकेड़े ने जाँच का नेतृत्व किया था। बाद में आर्यन ख़ान को 2022 में सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया, पर कानूनी उलझनें अभी भी जारी हैं।

दावा और सामग्री

वांकेड़े का मानना है कि इस सीरीज़ में "गलत, ख़राब और मानहानिकारक" जानकारी deliberately पेश की गई है, जिससे उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को चोट पहुँची है। विशेष रूप से पहले एपिसोड में एक पात्र, जो स्पष्ट रूप से वांकेड़े के समान दिखता है, नशीली दवाओं की तफ्तीश के दौरान एक बॉलीवुड पार्टी में घुसपैठ कर, एक अभिनेता को गिरफ्तार करते समय मध्य‑अंगुश (middle finger) उठाता है और राष्ट्रीय नारा "सत्यमेव जयते" के बाद यह गरिमामयी इशारा दिखाता है। वांकेड़े ने कहा कि यह दृश्य 1971 के "राष्ट्र सम्मान अपमान रोकथाम अधिनियम" की धारा‑7 का उल्लंघन है।

वांकेड़े ने 2 करोड़ (≈ 20 मिलियन रुपये) की हर्जाना मांग की है, जो टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल को दान के रूप में दी जानी चाहिए। वह यह भी चाहते हैं कि यह सीरीज़ कानूनी तौर पर हटाई जाए और भविष्य में ऐसा कोई भी सामग्री बनाते समय सरकारी एजेंसियों की छवि को खर्च‑बिगाड़ किया न जाए।

प्रतिवादियों की प्रतिक्रियाएँ

प्रतिवादियों की प्रतिक्रियाएँ

नेटफ़्लिक्स के वरिष्ठ वकील राजीव नायर ने कोर्ट में तर्क दिया कि सभी प्रतिवादी एक ही अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं, इसलिए एकजुट उत्तर देना मुश्किल है। उन्होंने यह भी कहा कि डॉक्यू‑सरीज़ में दिखायी गई घटनाएँ सार्वजनिक रिकॉर्ड पर आधारित हैं और इन्हें हटाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट पहुंचेगी।

रेड चिलीज़ के कॉर्पोरेट प्रेसिडेंट ने कहा कि उन्होंने इस सामग्री के निर्माण में किसी भी तरह की मानहानि की इच्छा नहीं रखी, बल्कि यह दर्शकों को एक "सच्ची और विचार‑उत्तेजक" कहानी पेश करने का प्रयास था। शाहरुख़ ख़ान ने अभी तक सार्वजनिक बयान नहीं दिया, पर उनके प्रतिनिधियों ने संकेत दिया कि वे अदालत के आदेश का सम्मान करेंगे।

क़ानूनी पहलू और अगले चरण

जज कौरव ने वांकेड़े को अपने याचिका में कुछ बदलाव करने को कहा, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि दिल्ली कोर्ट इस मामले को संभाल सकती है या नहीं। वांकेड़े के वरिष्ठ वकील संदीप सेठी ने संशोधित याचिका पेश कर दी, जिसमें कोर्ट को यह भी बताया गया कि इस विवादित सामग्री को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स से हटाने की मांग पहले भी कई बार की जा चुकी है।

अभी तक कोई अस्थायी निषेधाज्ञा (interim injunction) नहीं दी गई है, पर दोनों पक्षों को अगले सुनवाई तक अपने‑अपने उत्तर और साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश है। यदि कोर्ट वांकेड़े की हर्जाना की मांग को मानता है, तो टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल को 2 करोड़ रुपये मिलेंगे, जो संभवतः कैंसर रोगियों के उपचार में उपयोग किए जा सकते हैं।

प्रभाव और सार्वजनिक प्रतिक्रिया

प्रभाव और सार्वजनिक प्रतिक्रिया

सीरीज़ के एक क्लिप ने सोशल मीडिया पर धूम मचा दी थी; इंस्टाग्राम, ट्विटर (X Corp) और यूट्यूब पर इस दृश्य को लेकर बहस छिड़ गई। कई नेटिज़न ने "सलामती का सवाल" उठाते हुए वांकेड़े की बात का समर्थन किया, जबकि कुछ ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की बात कही। वांकेड़े ने बताया कि उनके परिवार को पाकिस्तान, यूएई और बांग्लादेश से धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनका व्यक्तिगत जीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। यह तथ्य न्यायिक परीक्षण को और भी संवेदनशील बना रहा है।

  • शाहरुख़ ख़ान और आर्यन ख़ान के बीच के रिश्ते को सार्वजनिक रूप से देखते हुए, मामला पॉप‑कल्चर का भी एक बड़ा हिस्सा बन गया है।
  • ड्रग रैड की मूल कहानी 2021 की है, पर कानूनी लंबी प्रक्रिया अभी भी जारी है और इससे जुड़े कई केस बंबई हाई कोर्ट में चल रहे हैं।
  • नेटफ़्लिक्स ने दो साल पहले भारत में "स्थानीय सामग्री" के लिए बड़ी रकम निवेश की थी; इस मामले से उसके भविष्य की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं।

इस प्रकार, यह मुक़दमा सिर्फ एक दावे‑प्रतिदावे का मामला नहीं, बल्कि भारत में मीडिया, न्याय और व्यक्तिगत अधिकारों के टकराव को भी उजागर करता है। अगले सुनवाई में कोर्ट यह तय करेगा कि क्या इस प्रकार की लाइफ़‑स्टाइल डॉक्यू‑सरीज़ को नियंत्रित करने का अधिकार सरकारी एजेंसियों के पास है या नहीं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

इस मुक़दमे का असर बॉलीवुड कलाकारों पर क्या होगा?

अगर कोर्ट वांकेड़े की मांग को मंज़ूर करता है, तो सच्ची घटनाओं को फिर‑से ड्रामेटाइज़ करने से कलाकारों को कानूनी जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। इससे भविष्य में फ़िल्म मेकर्स अधिक सतर्क रहेंगे और वास्तविक‑जीवनी कथाओं के उपयोग में सावधानी बरतेंगे।

क्या इस केस में नेटफ़्लिक्स को दंडित किया जा सकता है?

वर्तमान में कोर्ट ने किसी भी अस्थायी प्रतिबंध का आदेश नहीं दिया है। यदि नेटफ़्लिक्स को मानहानि सिद्ध हो जाती है, तो उसे हटाने का आदेश या आर्थिक दंड लग सकता है, पर यह अंतिम फैसला अगले सुनवाई में ही आएगा।

वांकेड़े ने टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल को दान क्यों माँगा?

वांकेड़े ने कहा कि कैंसर रोगियों की मदद के लिए लक्ष्य निधि होना एक सामाजिक दायित्व है। यह कदम उनके व्यक्तिगत नुकसान का संतुलन बनाने और सार्वजनिक goodwill अर्जित करने का तरीका माना जा रहा है।

क्या इस मामले से भविष्य में डाक्यू‑सरीज़ पर सेंसरशिप आएगी?

यदि कोर्ट निर्णय लेता है कि ऐसी सामग्री सार्वजनिक संस्थाओं की छवि को नुकसान पहुँचाती है, तो सख्त दिशानिर्देश लग सकते हैं। परंतु भारत की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा को देखते हुए, व्यापक सेंसरशिप की संभावना कम है।

भविष्य में इस तरह के मामलों से कैसे बचा जा सकता है?

निर्माताओं को वास्तविक‑दस्तावेज़ी तथ्यों की पुष्टि करने के बाद ही सिनेमाई रूप देना चाहिए। साथ ही, सार्वजनिक संस्थाओं को अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बढ़ानी होगी, जिससे कई विवाद पहले ही कम हो सकते हैं।

टिप्पणि (9)

  1. Jyoti Bhuyan
    Jyoti Bhuyan

    शाहरुख़ ख़ान और नेटफ़्लिक्स को नोटिस मिला, इसका मतलब है कि डाक्यू‑स्रीज़ अब और ज्यादा सावधानी बरतेगी। यह केस हमें जिम्मेदारी से कंटेंट बनाने की याद दिलाता है। कलाकारों को भी अपनी कहानी में सच्चाई और संवेदनशीलता का संतुलन रखना चाहिए। न्यायालय का फैसला इस बात को तय करेगा कि कितनी सीमा तक रचनात्मक स्वतंत्रता सुरक्षित है। आशा है कि इस मुक़दमे से सभी को सीख मिलेगी।

  2. Sreenivas P Kamath
    Sreenivas P Kamath

    हाहाहा, कोर्ट ने नोटिस भेज दिया और हम सब को "सावधानी" की सीख दी, जैसे फिल्म की शूटिंग में ही सीनर को माइक नहीं देना चाहिए।

  3. akshay sharma
    akshay sharma

    वांकेड़े का मानहानि केस सिर्फ व्यक्तिगत बेमेल नहीं, यह एक कानूनी बिंदु है जहाँ तथ्य और फिक्शन की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। डॉक्यू‑स्रीज़ में वास्तविक रिकॉर्ड को लेकर बस ड्रामा जोड़ना अब कोर्ट की नजर में गलत साबित हो सकता है। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि सार्वजनिक संस्थाओं की छवि को बचाने के लिए किस हद तक सेंसरशिप को वैध ठहराया जा सकता है। अगर नेटफ़्लिक्स को हटाने का आदेश मिले तो यह स्ट्रीमिंग उद्योग में एक बड़ा मिसाल बन जाएगा। इसलिए हर प्रोडक्शन हाउस को अपने रिसर्च विभाग को सुदृढ़ करना पड़ेगा।

  4. Anand mishra
    Anand mishra

    हम सभी को पता है कि भारतीय मीडिया और न्याय व्यवस्था अक्सर टकराव में आ जाती है, खासकर जब पॉप‑कल्चर और सरकारी संस्थाओं का मामला हो। इस मामले में शाहरुख़ ख़ान की कंपनी और नेटफ़्लिक्स दोनों को एक ही नोटिस मिलना असामान्य नहीं है, क्योंकि दोनों ही सार्वजनिक दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले संस्थान हैं। वास्तव में, इस डॉक्यू‑स्रीज़ का लक्ष्य दर्शकों को एक आकर्षक कहानी पेश करना था, लेकिन कहानी में वास्तविक तथ्यों की सच्चाई पर चर्चा अनिवार्य हो गई। वांकेड़े का दावा है कि उन्होंने खुद को अपमानजनक तरीके से चित्रित किया गया, जिससे उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को चोट पहुँची। यह बात सिर्फ व्यक्तिगत नाराज़गी नहीं, बल्कि एक कानूनी अधिकार का मुद्दा है, जहाँ मानहानि का सिद्धांत लागू हो सकता है। न्यायालय को यह तय करना होगा कि कंटेंट क्रिएटर को कितनी सीमा तक रचनात्मक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और सार्वजनिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए किस तरह के प्रतिबंध लगना उचित है। यदि कोर्ट वांकेड़े की मानहानि की मांग को स्वीकार करता है, तो इससे भविष्य में कई डॉक्यू‑स्रीज़ का निर्माण कठिन हो सकता है। दूसरी ओर, अगर कोर्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है, तो यह एक स्पष्ट संकेत देगा कि डॉक्यू‑स्रीज़ निर्माताओं को अधिक सावधानी से तथ्य एकत्र करने चाहिए। इस बीच, दर्शकों का भी एक रोल है; हमें सूचनात्मक सामग्री और मनोरंजन के बीच अंतर समझने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया पर इस केस को लेकर जो बहस चल रही है, उससे यह स्पष्ट होता है कि जनता इस मुद्दे को संवेदनशीलता से देख रही है। कई लोग वांकेड़े के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं, जबकि कुछ अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा कर रहे हैं। यह द्विध्रुवी प्रतिक्रिया दर्शाती है कि भारतीय समाज में आज भी इस तरह के कानूनी और सांस्कृतिक टकराव को लेकर गहरी विभाजन मौजूद है। कोर्ट के अंतिम निर्णय से न केवल इस केस की समाप्ति होगी, बल्कि भविष्य की कई सामग्री निर्माण प्रक्रियाओं पर भी असर पड़ेगा। हमें आशा करनी चाहिए कि अदालत एक संतुलित और न्यायसंगत निर्णय दे, जिससे सभी पक्षों को उचित संतोष मिले।

  5. Prakhar Ojha
    Prakhar Ojha

    बिलकुल सही कहा, लेकिन इतने सारे "साक्ष्य" का हवाला देकर असली मज़ा तो सच्चाई को बारीकी से दिखाने में है, न कि बस "कोई भी बुरा नहीं" को बमबारी करने में है।

  6. Pawan Suryawanshi
    Pawan Suryawanshi

    अरे भाई, नेटफ़्लिक्स की सिरीज़ तो बहुचर्चित थी, लेकिन अगर सच्चाई में धाकड़ बात है तो कोर्ट की सुनवाई से सबको पता चल जाएगा 🤔। केस का असर कलाकारों के लिए एक चेतावनी है कि इंट्रीस्ट वाले मुद्दों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। अगर कोर्ट हटाने का आदेश देते हैं तो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म को भी कंटेंट रिव्यू में कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। देखते हैं आगे क्या होता है, सब मिल के 🙌।

  7. Harshada Warrier
    Harshada Warrier

    भाई लोगो, ये सारा केस तो बड़ी साजिश का हिस्सा है, कहीं सरकार इस धारा 7 को इस्तेमाल करके अपने आधी राज को छिपा नहीं रही? मैं तो कहती हूँ कि नेटफ़्लिक्स को बंद कर देना चाहिए, वरना आगे और भी बड़ी जाल बुनेंगे।

  8. Nath FORGEAU
    Nath FORGEAU

    सुनवाई का टाइम बदल गया तो केस आगे बढ़ेगा

  9. Hrishikesh Kesarkar
    Hrishikesh Kesarkar

    देखो, कोर्ट का फैसला ही अंत में सबको बताएगा।

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