भारत ने ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई के बयानों पर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। खामेनेई ने पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के अवसर पर दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के दुःख को उजागर किया था, जिसमें भारत, गाजा और म्यांमार का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था। उनके अनुसार, 'हम खुद को मुस्लिम नहीं कह सकते अगर हम म्यांमार, गाजा, भारत या किसी और जगह पर एक मुस्लिम के दुःख को नहीं समझते।'
आयतुल्लाह खामेनेई की इस टिप्पणी पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे 'गैर-जानकारी वाल और अस्वीकार्य' करार दिया। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'हम ईरान के सुप्रीम लीडर द्वारा भारत के अल्पसंख्यकों के संबंध में की गई टिप्पणियों की कड़ी निंदा करते हैं। ये टिप्पणियाँ गैर-जानकारी युक्त और अस्वीकार्य हैं।'
विदेश मंत्रालय ने न केवल खामेनेई की टिप्पणी को नकारा, बल्कि उन देशों को भी सलाह दी जो अल्पसंख्यकों पर टिप्पणियाँ कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी करने वाले देशों को पहले अपनी खुद की मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा करनी चाहिए।'
इस घटना के संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि खामेनेई के बयानों के साथ ही ईरान में भी प्रदर्शन हो रहे थे। हज़ारों महिलाएं अपने हिजाब के बिना सड़कों पर उतर आईं थीं, जिससे दूसरी बार महसा अमीनी की मौत की वर्षगांठ मनाई जा रही थी। महसा अमीनी, एक 22 वर्षीय महिला, की मृत्यु 16 सितंबर, 2022 को ईरान की नैतिकता पुलिस द्वारा गिरफ्तार होने के बाद हुई थी, जिसका कथित आरोप था कि उन्होंने अपना हिजाब ठीक से नहीं पहना था।
भारत में
मुस्लिम समुदाय के साथ स्थिति पर चर्चा करते समय, कई बार विभिन्न समुदायों के रिश्तों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। मुस्लिम समुदाय भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। भारत का संविधान सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार देता है और धार्मिक स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। भारतीय समाज में विविधता और सहिष्णुता की परंपरा है, और यही भारतीय लोकतंत्र की गहराई भी है।आयतुल्लाह खामेनेई की टिप्पणी ने भारत में मुस्लिम समुदाय के साथ हो रही समस्याओं को उभारने की कोशिश की, लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे स्पष्ट रूप से नकार दिया। भारतीय समाज में धार्मिक सहिष्णुता और अंतर-धार्मिक संवाद के माध्यम से समस्याओं को हल करने की एक लंबी परंपरा रही है।
कई बार विदेशी नेताओं के बयान उनके अपने देश की राजनीति और सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए होते हैं। हालांकि, ऐसे बयानों का असर अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ता है। इसलिए किसी भी प्रकार के बयान को सार्वजनिक करने से पहले सटीकता और नपे-तुले शब्दों का चयन करना महत्वपूर्ण है।
मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा में भारत की प्रतिबद्धता स्पष्ट है। अब समय आ गया है कि सभी देश अपनी-अपनी चिंताओं और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें और विवादित बयानों से बचें, जो केवल अंतरराष्ट्रीय तनाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
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