बुद्ध पूर्णिमा – क्या है और क्यों मनाते हैं?

बुद्ध पूर्णिमा वह दिन है जब भगवान सिद्धार्थ गौतम, अर्थात् बुद्ध, का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण एक साथ होता माना जाता है। यह दिन शाकाहारी, शांति‑पसंद और आध्यात्मिक लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। अक्सर इसे ‘वेसाक’ भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन को वेसाक धूप का भी नाम मिला है।

इतिहास और महत्व

ऐतिहासिक रूप से बुद्ध ने लगभग 5वीं शताब्दी ईसा‑पूर्व में इस दिन ज्ञान प्राप्त किया था। बौद्ध ग्रंथों में बताया गया है कि पूर्णिमा के दिन लॉटस पेड़ के नीचे शान्ति की गहराई को समझते हुए उन्होंने पहला भाषण दिया। इसलिए इस दिन को बौद्ध धर्म में ‘धर्माब्धि पूर्णिमा’ कहा जाता है।

हिंदुस्तान में भी यह दिन कई सालों से चलता आया है। राजाओं ने इस पर्व को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ बौद्ध जनसंख्या बड़े पैमाने पर रहती है, जैसे महाराष्ट्र, लद्दाख और कर्नाटक।

भारत में मनाने की रीति‑रिवाज

हर साल लोग बुद्ध के जीवन को याद करते हुए मंदिरों में धूप, फूल और मोती लेकर जाते हैं। धूप जलाने की परम्परा बहुत पुरानी है; यह शुद्धि और आध्यात्मिक प्रकाश का प्रतीक है। बाद में वज्र, मधु, फल और शाकाहारी भोजन का प्रसाद दिया जाता है।

विश्वविद्यालयों और स्कूलों में भी विशेष कक्षाएँ आयोजित की जाती हैं जहाँ बच्चों को बुद्ध के शिक्षाओं के बारे में सिखाया जाता है। कई शहरों में ‘धर्म सभा’ भी होती है, जिसमें बौद्ध ग्रंथों का पाठ और ध्यान किया जाता है।

2025 में कई बड़े बौद्ध केंद्रों ने विशेष कार्यक्रमों की घोषणा की है। लखनऊ के बौद्ध महाविहार में शास्त्रार्थ, कोटि‑कोटि जने के साथ सामूहिक धूपदान होगा। लद्दाख में तिब्बती बौद्ध संघ ने योग और कंडलिनी प्रैक्टिस का सत्र रखा है।

यदि आप इस दिन अपने घर में कुछ खास करना चाहते हैं तो एक छोटा सोचना‑विचारना सत्र रख सकते हैं। धूप जलाकर एक छोटा पूजा स्थान बनायें, बुद्ध के श्लोक पढ़ें और शाकाहारी मिठाई बांटें। इस तरह का सरल प्रयत्न न केवल आध्यात्मिकता बढ़ाता है बल्कि परिवार में शांति भी लाता है।

बुद्ध पूर्णिमा सिर्फ एक त्यौहार नहीं, यह एक याद दिलाता है कि साधारण मनुष्य भी शान्ति और ज्ञान की ओर कदम बढ़ा सकता है। इसलिए इस दिन को जितना संभव हो, शांति‑और‑सच्चाई के साथ मनाएं।